Sunday, August 5, 2012

मित्रता दिवस के अवसर पे.......


महंगाई में सस्ती दोस्त की वफा-हास्य कविता




आशिक ने अपने दोस्त से कहा
‘‘यार, महंगाई बढ़ गयी है,
माशुका की मांगें पूरी करते करते
जेब कंगाली की सीढ़िया चढ़ रही है,
अब पेट्रोल होता जा रहा है महंगा,
होटलों में बैरे पेश करते हैं महंगे बिल
तब हो जाता है उनसे पंगा,
यह महंगाई तो मोहब्बत को मार डालेगी,
इस संसार में केवल नफरत को ही पालेगी
मुझे अपनी चिंता नहीं
माशुका का ख्याल आता है,
कैसे करेगी मेरे बिना गुजर
यह सोचकर दिल भर आता है।’’

दोस्त ने कहा
‘‘कैसी बात करते हो यार,
अपनी दोस्ती है, न कि व्यापार,
महंगाई में मोहब्बत महंगी हो सकती है
पर दोस्ती कभी नहीं थकती है,
तुम्हारा दर्द सुनकर मेरा दिल भर आया
इतने दिन तुमने क्यों छिपाया,
घबड़ाओ नहीं अपनी माशुका के घर का पता दो,
‘मैं उससे निभाऊंगा’ तुम जाकर उसे अभी बता दो,
जो तुमने उसे ऐश कराए,
मैं उससे ज्यादा कराऊंगा
ताकि उसे तुम्हारी याद न आए,
अरे, वही दोस्त संसार में नाम पाता है,
जो महंगाई में भी दिल के साथ दोस्ती निभाता है।’’
-----दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका

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